मेरठ/परतापुर, संवाददाता
गगोल गांव स्थित राजऋषि विश्वामित्र का आश्रम उनके तप की शक्ति का आज भी गवाह है। परिसर में स्थित विशाल कुंड में गंधक के पानी का प्राकृतिक स्त्रोत आज भी मौजूद है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस कुंड के जल में स्नान करने से इंसान के तमाम तरह के चर्मरोग दूर हो जाते हैं। कुंड में ही राजऋषि की यज्ञवेदी भी मौजूद है। जहां यज्ञ को संपन्न कराने के लिए मुनि विश्वामित्र अयोध्या से भगवान श्रीराम व लक्ष्मण के साथ यहां लंबे समय तक रहे। यहीं वह तीर्थ स्थल है, जहां पर प्रभु श्रीराम ने असुरों का संहार भी किया। यज्ञ संपन्न होने के बाद दोनों भाई मुनि विश्वामित्र के साथ सीता स्वयंवर के लिए मिथिला गए थे।
लंकापति रावण के गुप्तचर भी करते थे निगरानी
ऋषि विश्वामित्र के आग्रह पर यहां राम-लक्ष्मण के कुछ समय तक रहने का जिक्र किया जाता है। पौराणिक महत्व वाले इस तीर्थ का इतिहास बहुत गौरवमयी है। रामायण के अनुसार, दण्डकारण्य में विश्वामित्र-भारद्वाज आदि महर्षियों के आश्रम-तपस्थली एवं प्रयोगशालाएं मौजूद थीं। महत्वपूर्ण स्थल होने के कारण रावण के गुप्तचर एवं सेना इन पर विशेष निगरानी रखते थे।
खिचड़ी वाले बाबा ने किया था चमत्कार
मुनि विश्वामित्र की तपो भूमि का विकास खिचड़ी वाले बाबा ने किया था। कहा जाता है कि एक बार खिचड़ी वाले बाबा ने इसी कुंड के जल से खिचड़ी बनाकर चमत्मकार किया था। खिचड़ी में घी के स्थान पर कुंड के जल का इस्तेमाल किया गया था। कुंड के जल में खिचड़ी पकाए जाने के चमत्कार से संत खिचड़ी वाले बाबा के नाम से मशहूर हो गए। वहीं, त्रेता युग से ताल्लुकात रखने वाले इसी तीर्थ स्थल से 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के शिलान्यास के लिए कलश में मिट्टी भेजी गई थी। इसके अलावा मेरठ के बाबा औघड़नाथ मंदिर और बालाजी शनिधाम मंदिर के पवित्र स्थल से भी मिट्टी भेजी गई थी।
खरदूषण से रखा खरखौदा नाम
वैसे तो गगोल तीर्थ स्थल मेरठ से हापुड़-गाजियाबाद-शाहदरा-बागपत आदि को समाहित करता है। यह दण्डकारण्य अथवा जनस्थान यमुना से लेकर गंगा तक विस्तृत भू-भाग में फैला हुआ है। इस जनस्थान में ऋषियों एवं नवीन खोजों की निगरानी के लिए खर-दूषण-ताड़का-सुबाहु आदि महाभट्ट योद्धा निवास करते थे। कहा जाता है कि खर-दूषण का निवास होने के कारण ही समीपस्थ गांव का नाम खरखौदा पड़ गया।
इन तिथियों पर उमड़ता है जन शैलाब
तीर्थ स्थल के महंत बाबा शिवदास ने बताया कि हर साल कार्तिक पूर्णिमा, सोमबती अमावस्या, ज्येष्ठ दशहरा, गुरुपूर्णिमा, पूर्वांचल का छह महोत्सव और 18 दिसम्बर को बरसी के कार्यक्रम में तीर्थ स्थल पर जनसैलाब उमड़ता है। यहां हर साल बड़ी संख्या में लोग कुंड में स्नान करने के लिए आते है। कुंड क पास ही श्रीराम व लक्ष्मण, मुनि विश्वामित्र, शिव परिवार, बालाजी, शेरावाली माता आदि के मंदिर हैं। पिंडदान हेतु इसे दूसरा गया तीर्थ माना जाता है। इसीलिए पितृ उद्धार हेतु यहा लोग दूर-दूर से पिण्ड दान करने आते हैं। आज भी ऋषि विश्वामित्र के नाम है आश्रम के पास 99 बीघा भूमि है। यह भूमि आज भी राजऋषि विश्वामित्र के नाम ही खसरा खतौनी व अन्य दस्तावेजों में दर्ज है। प्रभु श्रीराम ने अपने तीर से भू-गर्भ से जल का स्त्रोत (किवदंतियों में गंगा) प्रकट किया। यह कुंड पहले कच्चा था जिसे बाद में पक्का कर दिया गया। इसे गंधक के पानी का प्राकृतिक स्त्रोत भी माना जाता है।